सोमवार, 19 सितंबर 2011

शुक्रवार, 19 अगस्त 2011

युवा आर.जे. अमित और मस्त रेडियों पर विशेष मेहमान

डा. रमापति राम त्रिपाठी  और युवा आर. जे.अमित

शुक्रवार, 1 अक्तूबर 2010

अंतर्राष्ट्रीय परिसंवाद और विश्व हिंदी सेवा सम्मान अलंकरण समारोह

अंतर्राष्ट्रीय परिसंवाद और विश्व हिंदी सेवा सम्मान अलंकरण समारोह उज्जैन में सम्पन्न

हिंदीसेवियों को विश्व हिंदी सेवा सम्मान से विभूषित किया गया






उज्जैन/हिन्दी दिवस के अवसर पर उज्जैन में अंतर्राष्ट्रीय परिसंवाद और विश्व हिंदी सेवा सम्मान अलंकरण समारोह का आयोजन हुआ। परिसंवाद‘विश्व पटल पर हिन्दी का बदलता स्वरूप’ पर एकाग्र था । इसमौके पर उत्कृष्ट हिंदी सेवा के लिए देशदुनिया के अनेक साहित्यकार,संस्कृतिकर्मी और हिंदीसेवियों को विश्व हिंदी सेवा सम्मान से विभूषित किया गया। समारोह उज्जैन स्थित कालिदास संस्कृत अकादमी में दो सत्रों में संपन्न हुआ। विविध गद्यपद्य और अन्य विधाओं जैसे कविता ,गीत,उपन्यास , कहानी,आलोचना ,संचार माध्यम ,ब्लोगिंग, सिनेगीत वर्गों के अंतर्गत ये अलंकरण अर्पित किए गए।

मालवा रंगमंच समिति, उज्जैन और कृतिका कम्यूनिकेशन,मुंबई के संस्थापक अध्यक्ष श्री केशव राय ने बताया कि इस कार्यक्रम का स्थान बहुत सोच-विचार के साथ उज्जयिनी को चुना गया । यहाँ से सदैव ही परिवर्तन की हवा चलती आई है। अब आगे की हमारी भाषा , हमारी संस्कृति की दिशा का निर्धारण भी यहीं से हो ,यह जरूरी है। इस अवसर पर उत्कृष्ट हिंदी सेवा के लिए दुनिया के अनेक देशों के साहित्यकार और हिंदीसेवियों को विश्व हिंदी सम्मान से विभूषित गया । यहाँ सम्मानित हुये लोगों में अपने पहले ही उपन्यास से चर्चा में आयीं महुआ मांझी[रांची], विदेश में हिन्दी की ध्वजा फहराने वाली लेखिका डॉ.अन्जना संधीर[युएसए], नवनीत के सम्पादक श्री विश्वनाथ सचदेव [मुंबई],थ्री इडियत के गीतकार स्वानंद किरकिरे,सिनेजगत की मशहूर गायिका कविता सेठ, कवि देवमणि पाण्डे,डॉ त्रिभुवननाथशुक्ल [भोपाल] , डॉ.नन्दलाल पाठक[मुंबई] ऐतिहासिक उपन्यासकार डॉ.शरद पगारे ,गीतकार चंद्रसेन विराट[इंदौर],भड़ास फॉर मीडिया के यशवंत सिंह [दिल्ली ],आचार्य एवं समीक्षक डॉ.शैलेन्द्रकुमार शर्मा[उज्जैन ,कथाकार एस आर हरनोट [शिमला], मुंबई विश्वविद्यालय में हिन्दी विभाग के  प्रोफेसर और सुप्रसिद्ध समीक्षक  डॉ करुणाशंकर उपाध्याय [मुंबई] गायत्री शर्मा ,भीका शर्मा [इंदौर]आदि शामिल हैं।इस मौके पर प्रकाशित स्मारिका ‘हिन्दी विश्व’ का लोकार्पण अतिथियों द्वारा किया गया।

‘विश्व पटल पर हिन्दी का बदलता स्वरूप’ पर एकाग्र परिसंवाद वरिष्ठ पत्रकार श्री विश्वनाथ सचदेव [मुंबई] की अध्यक्षता में सम्पन्न हुआ। परिसंवाद का विषय प्रवर्तन विक्रम विश्वविद्यालय ,उज्जैन के आचार्य एवं समीक्षक डॉ. शैलेन्द्र कुमार शर्मा ने किया। परिसंवाद में शामिल होने वाले विद्वानों में डॉ त्रिभुवननाथ शुक्ल [भोपाल], प्रसिद्ध सिने गीतकार श्री स्वानन्द किरकिरे, कविता सेठ,डॉ.नन्दलाल पाठक[मुंबई],यशवंत सिंह [दिल्ली ],डॉ, अंजना संधीर,महुआ मांझी ,जवाहर कर्नावट [अहमदाबाद] आदि प्रमुख थे। काव्य संध्या में श्री स्वानन्द किरकिरे [मुंबई] ,यशवंत सिंह [दिल्ली ], नेहा शरद ,डॉ.शिव चौरसिया, श्री पवन जैन, श्री देवमणि पाण्डे [मुंबई] ,डॉ पिलकेन्द्र अरोरा आदि ने अपनी रचनाओं से मंत्रमुग्ध किया।

शुक्रवार, 30 जुलाई 2010

हिन्दी विश्व चेतना की संवाहिका है- डा. करुणाशंकर उपाध्याय

हिन्दी विश्व चेतना की संवाहिका है- 
डा. करुणाशंकर उपाध्याय


के.ई.एस. श्राफ महाविद्यालय,मुंबई में हिन्दी साहित्य परिषद के उद् घाटन के अवसर पर बोलते हुए सुप्रसिद्ध समीक्षक डा. करुणाशंकर उपाध्याय ने कहा कि वतर्मान समय में हिन्दी विश्वचेतना की संवाहिका बन रही है। भारत की विकासमान अंतर्राष्ट्रीय हैसियत इसके लिए वरदान सिद्ध हो रही है। आज विश्व स्तर पर इसकी व्याप्ति की अनुभूति की जा सकती है। यह बहुराष्ट्रीय निगमों, बाजार की शक्तियाँ तथा नवीनतम सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में बहुत तेजी से प्रयुक्त हो रही है, भले ही इसेक पीछे इन शक्तियों की लाभ वृत्ति काम कर रही हो। इस अवसर पर बोलते हुए कलाकार अभिनेता सुरेन्द्र पाल ने छात्रों को हिन्दी के प्रित रूचि दिखाने के लिए बधाई दी तथा धारवाहिक महाभारत में आचार्य द्रोण की भूमिका के रूप में प्रस्तुत कतिपय संवादों को बोलकर श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया। इस मौके पर महाविद्यालय के प्रबंध न्यासी तथा गुजराती के प्रसिद्ध साहित्यकार दिनकर जोशी ने हिन्दी साहित्य परिषद के उद् घाटन पर अपनी प्रसन्नता जाहिर की, साथ ही हिन्दी को दिलों से जोडनेवाली भाषा बतलाया। महाविद्यालय की प्राचार्या डा. लिली भूषण ने अतिथियों का पिरचय देते हुए स्वागत किया। कार्यक्रम का सूत्र संचालन हिन्दी विभाग के व्याख्याता.डा. वेदप्रकाश दुबे ने किया। अंत में प्रा. डा. स्वप्ना दत्ता ने आभार ज्ञापित किया। इस अवसर पर महाविद्यालय के उपप्राचार्य प्रो. वी. एस. कन्नन, कला संकाय की संयोजिका प्रो. सुमिता कनौजिया, हिन्दी साहित्य परिषद की भारती यादव, हादिर्क भट्ट, सरिता बिन्द, प्रीति यादव, नरेन्द्र तिवारी, संतोष यादव, अनिल बिन्द, रीतु, शशिकला, सीमा मेहरा के अलावा महाविद्यालय के तमाम प्राध्यापक और विद्यार्थी भारी संख्या में उपस्थित थे।

हिन्दी साहित्य परिषद का उद् घाटन समारोह की झलकियाँ


के.ई.एस. श्राफ महाविद्यालय के हिन्दी विभाग द्वारा आयोजित हिन्दी साहित्य परिषद के उद् घाटन समारोह के अवसर हिन्दी विभाग के व्याख्याता डा.वेदप्रकाश दुबे (माइक पर) और मंच पर बाएँ से प्रो. वी.एस. कन्नन , डा.लिली भूषण (प्राचार्या), सुप्रसिद्ध अभिनेता सुरेन्द्र पाल, गुजराती के साहित्यकार दिनकर जोशी,करुणाशंकर उपाध्याय (वरिष्ठ हिन्दी समीक्षक)।




के.ई.एस. श्राफ महाविद्यालय के हिन्दी विभाग द्वारा आयोजित हिन्दी साहित्य परिषद के उद् घाटन समारोह के अवसर हिन्दी विभाग के व्याख्याता डा.वेदप्रकाश दुबे (माइक पर) और मंच पर (बाएँ से) प्रो.सुमिताकनौजिया (संयोजिका -कला संकाय), प्रो. वी.एस. कन्नन , डा.लिली भूषण (प्राचार्या), सुप्रसिद्ध फिल्म अभिनेता सुरेन्द्र पाल, गुजराती के साहित्यकार दिनकर जोशी,करुणाशंकर उपाध्याय (वरिष्ठ हिन्दी समीक्षक)।






                   दीप प्रज्जवलन करते हुए फिल्म अभिनेता सुरेन्द्र पाल ।


गुजराती के साहित्यकाल दिनकर जोशी दीप प्रज्जवलन करते हुए।




कला संकाय की संयोजिका प्रो.सुमिता कनौजिया दीप प्रज्जवलन करते हुए।





 हिन्दी साहित्य परिषद की महासचिव भारती यादव दीप प्रज्जवलन करते हुए।


सरस्वती वंदना प्रस्तुत करते हुए महाविद्यालय के विद्यार्थी (प्रीति व अन्य)।




सुप्रसिद्ध फिल्म अभिनेता सुरेन्द्र पाल का स्वागत करती हुई हिन्दी साहित्य 
परिषद की महासचिव भारती यादव।




सुप्रसिद्ध हिन्दी समीक्षक डा.करुणाशंकर उपाध्याय का स्वागत करते हुए 
परिषद के सचिव हादिर्क भट्ट।




गुजराती के साहित्यकार दिनकर जोशी का स्वागत करते हुए 
परिषद की उपाध्यक्ष सरिता बिन्द।




प्राचार्या डा. लिली भूषण का स्वागत करती परिषद की पदाधिकारी आफरीन खान।




कला संकाय की संयोजिका प्रो. सुमिता कनौजिया का स्वागत करते हुए 
परिषद का पदाधिकारी सुनील यादव।


प्रो. वी.एस. कन्नन का स्वागत करते हुए रीतु।





                           स्वागत भाषण करती हुए के.ई.एस. श्राफ महाविद्यालय की प्राचार्या डा. लिली भूषण।


सुप्रसिद्ध अभिनेता सुरेन्द्र पाल (माइक पर) साथ में (बाँए से) डा. लिली भूषण (प्राचार्या), प्रो. कन्नन, डा. उपाध्याय और डा. वेदप्रकाश।




हिन्दी समीक्षक करुणाशंकर उपाध्याय अध्यक्षीय वक्तव्य देते हुए। 
साथ में बाँए से प्रो.सुमिता और डा.लिली भूषण एवं अन्य।





प्रो.डा.स्वप्ना दत्ता आभार व्यक्त करते हुए।




उपस्थित प्राध्यापकगण एवं विद्यार्थी।




उपस्थित प्राध्यापकगण एवं विद्यार्थी।




विद्यार्थियों के साथ अभिनेता सुरेन्द्र पाल एवं अतिथि तथा प्राचार्या एवं उपप्राचार्य।

रविवार, 25 अप्रैल 2010

ए.के. दिनकर की कविताएं




ए.के.दिनकर


एक -

मेरा हिन्दुस्तान रहेगा

वो  थे पागल इंसान
जिन्होंने मचाया था तुफान
शैतानी दिमाग था उनका
न कोई मजहब था न ईमान।

क्या कसूर था उनका जो सब मारे गये इंसान
बेकसूर थे वे लोग, थे हिन्दू भी और मुसलमान।

हमें फख़ है अपने जवानों पर
जिन्होंने वतन की खातिर किया कमाल
सूबों की तुच्छ दीवारें तोडकर
मुल्क परिधी की दी है मिशाल।

इंताहा हो गयी है हमारे सब्र की 
ए दुश्मनों, सब्र का इंतहा न लो आगे
हमारी खामोशी को कायरता न समझो
खाक हो जाओंगे हमारे जलाल के आगे।

हम हिन्दुस्तानी अपनी ताकत पर अकडते नहीं 
पर दुश्मन सामने आये तो कभी डरते नहीं
शेर की मांद में हाथ मत डालों सियारों
जिन्दा न बचोगे, हमारे आगे दुश्मन छहरते नहीं।

जब कभी बाहर से मुसीबत आई है
हम सबने एक होकर ताकत जुटाई है
कौम मजहब सुबावाद भूलाकर 
देश पर मरने की कसम खाई है।

ये वतनपरस्ती का जज्बा है दुनियावालों 
सबसे पहले यहाँ हर आदमी हिन्दुस्तानी  है।
युगों-युगों तक प्यारा हिन्दुस्तान रहेगा
इस मुल्क की यही कहानी है।


दो -

हम तो गुनाह करने से भी डरते यहाँ
लोग तो गुनाह पे गुनाह किये जाते हैं
चारों तरफ देखते हैं झूठ फरेब का मंजर
फिर भी उसी शिद्दत से हम जिये जाते हैं।

पुराना फलसफा शायद दफन हो गया है
दोस्त बनकर ही यहाँ दुश्मनी निभाते हैं
दुश्मन तो सामने से वार करते हैं फिर भी 
दोस्त तो पीठ में ही खंजर चुभाते हैं

प्यार मुहब्बत से क्यों न जाने रहा नहीं जाता
दूसरों का छोटा सा आशियाना देखा नहीं जाता
कोई किस तरह जी रहा है सकून से जहाँ में 
अरे बख्शो भी उसे, क्या मुस्कराना उसका देखा नहीं जाता।

ये दुनिया का कैसा दस्तूर है दिनकर
यहाँ अपने भी पराये क्यों नजर आते हैं
नजर से नजर मिलाते से बचते है क्यों
शायद दिल साफ नहीं जो नजर से नजर चुराते हैं। 

तीन -
हरेक से होती नहीं दोस्ती 
निभाना बडा मुश्किल है दोस्ती 
छल कपट की मेरी दोस्ती में जगह ही नहीं
गोया खुली किताब है मेरी दोस्ती

समझ के दोस्ती करना मेरे दोस्त
बडी नाजूक मिजाज है मेरी दोस्ती
दोस्ती में दगा कभी देना नहीं
सदमा ये झेल न पायेगी मेरी दोस्ती

दोस्ती पे मरने की कसमें खाते यहाँ
जीने की राह दिखलाएगी मेरी दोस्ती
समंदर की गहराई है मेरी देस्ती में 
गोया आसमान से उँची है मेरी दोस्ती

कहने को लोग दोस्ती का गम भरते यहाँ
मेरी हर सांस में समाई है दोस्ती
मेरी दोस्ती दिमाग से सोचती नहीं 
दिल से निकल के आई है मेरी दोस्ती 


(रचनाकार एम.टी.एल.एल. में महाप्रबंधक पद पर कार्यरत हैं।